जीवन की तमाम विपत्तियों का कारण है क्रोध, जाने इसके कारण व् समाधान

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जीवन में हम सभी को कभी न कभी किसी न किसी बात पर क्रोध आता है। कभी किसी को अपनी बात मनवाने के लिए तो कभी किसी की बात को नहीं मानने के लिए अक्सर लोग क्रोध करते हुए देखे जाते हैं। क्रोध एक ऐसा भाव है जो इंसान के अस्तित्व को ही खत्म कर देता है। क्रोध के आने पर व्यक्ति के सही-गलत सोचने की शक्ति ही खत्म हो जाती है। आइए जानते हैं कि जीवन में इंसान को आखिर क्रोध से क्यों बचना चाहिए।

गुस्सा आने के लिए जिम्‍मेदार कारण

क्रोध आने का प्रमुख कारण व्यक्तिगत या सामाजिक अवमानना है। उपेक्षित तिरस्कृत और हेय समझे जाने वाले लोग अधिक क्रोध करते है। क्योंकि वे क्रोध जैसी नकारात्मक गतिविधी के द्वारा भी समाज को दिखाना चाहते है कि उनका भी अस्तित्व है। क्रोध का ध्येय किसी व्यक्ति विशेष या समाज से प्रेम की अपेक्षा करना भी होता है।

चिंता

चिंता क्रोध के सबसे आम कारणों में से एक है। चाहे आप अपने बारे में चिंतित हों या अपने किसी प्रियजन को लेकर। चिंता और यहां तक कि डर भी कुछ परिस्थितियों में तेजी से गुस्सा आने का कारण बन सकता है।

शक्तिहीनता

क्रोध का एक और सामान्य कारण शक्तिहीनता है। यह भावना अक्सर नियंत्रण की हानि और असहायता की भावनाओं से जुड़ी होती है। यदि आप अपने स्वास्थ्य के साथ समस्याओं से पीड़ित हैं या आप एक अपमानजनक रिश्ते में हैं, जहां आप खुद को फंसा हुआ महसूस कर रही हैं, तो ऐसे में आप विशेष रूप से गुस्सा महसूस कर सकती हैं।

अतीत की घटनाएं या आघात

गुस्‍सा ट्रॉमेटिक या दर्दनाक अनुभव का स्थायी प्रभाव हो सकता है। भले ही आपको लगता है कि आप घटना से आगे बढ़ चुके हैं। अतीत के आघात की यादें चिंता, हताशा और यहां तक ​​कि क्रोध के प्रकोप को भी ट्रिगर कर सकती हैं। अतीत के आघात को ठीक से हल करने के लिए, पेशेवर की मदद लेना हमेशा एक अच्छा विचार है।

दुख या शोक

यह गुस्से का एक और सामान्य कारण है। दुख एक भारी भावना हो सकती है जो अक्सर कठिनाई, दर्द और व्यक्तिगत नुकसान से जुड़ी होती है। दोस्तों, प्रियजनों, भागीदारों, परिवार के सदस्यों, यहां तक ​​कि एक पालतू जानवर की मृत्यु से भी दुख हो सकता है। दुख, पेशेवर या व्यक्तिगत निराशा, नौकरी की हानि, शारीरिक चोट या वर्तमान घटनाओं सहित अन्य कठिनाइयों के कारण भी हो सकता है।

गीता में है इसका समाधान

श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 2 के 63 श्लोक में कहा गया है कि-

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।

इस श्लोक का अर्थ है कि क्रोध से उत्पन्न होता है मोह और मोह से स्मृति विभ्रम। स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश होने से वह मनुष्य नष्ट हो जाता है।

श्रीमद भगवद गीता के इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति को कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए। क्योंकि क्रोध करने पर व्यक्ति का दूसरा के प्रति मोह यानी प्यार खत्म हो जाता है। जब व्यक्ति के अंदर प्यार खत्म होता है तो उसको लेकर दिमाग में बनाई गई स्मृति कमजोर होने लगती है। ऐसे में जब व्यक्ति की स्मृति ही खोने लगती है तो व्यक्ति की बुद्धि का नाश होने लगता है। जब व्यक्ति की बुद्धि ही नहीं काम करती है तो उस व्यक्ति का हमेशा के लिए नाश हो जाता है। क्योंकि क्रोध के कारण उसका परिवार के साथ-साथ समाज भी बहिष्कार कर देता है। इसलिए बेकार में गुस्सा करने से बचना चाहिए।