कल यानी 5 नवंबर को है अहोई अष्टमी व्रत, जाने शुभ मुहूर्त एवं पूजन विधि

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अहोई की पूजा कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन प्रदोषकाल में की जाती है। इस दिन सभी माताएं सूर्योदय से पहले जगती हैं और उसके बाद स्नान करके माता अहोई की पूजा करती हैं। आज के दिन अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है। इस दिन माता स्याहु की पूजा करने का विधान भी है। हिंदू पंचांग के अनुसार, अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कार्तिक महीने की अष्टमी तिथि को रखा जाता है।

यह व्रत मुख्य रूप से महिलाएं अपने बच्चों की सेहत के साथ उनकी दीर्घायु की कामना के लिए भी रखती हैं। अहोई अष्टमी के दिन माता अहोई, माता स्याही और भगवान गणेश की उपासना की जाती है। इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 5 नवंबर यानी कल रखा जाएगा। ऐसी मान्यता है कि इस दिन निर्जला व्रत रखने से माता अहोई का आशीर्वाद मिलता है और घर में समृद्धि के साथ बच्चों की सेहत भी बनी रहती है।

अहोई अष्टमी पर पूजन का समय शाम 5 बजकर 33 मिनट से लेकर शाम 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगा यानी पूजन के लिए आपको सिर्फ 1 घंटा 19 मिनट का ही समय मिलेगा। साथ ही कल तारे दिखने का समय शाम 5 बजकर 58 मिनट रहेगा, इस समय व्रत का पारण किया जा सकता है। साथ ही अहोई अष्टमी वाले दिन रवि पुष्य योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण भी होने जा रहा है, जिसमें अहोई माता का पूजन किया जा सकता है।

शुभ मुहूर्त

अहोई अष्टमी 5 नवंबर रविवार को रखा जाएगा। अष्टमी तिथि की शुरुआत 5 नवंबर यानी कल रात 12 बजकर 59 मिनट से होगी और समापन 6 नवंबर को प्रात: 3 बजकर 18 मिनट पर होगा।

पूजन विधि

  • अहोई अष्टमी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर देवी का स्मरण कर व्रत का संकल्प लिया जाता है।
  • इसके बाद अहोई माता की पूजा के लिए दीवार या कागज पर गेरू से अहोई माता और उनके सात पुत्रों का चित्र बनाया जाता है।
  • अहोई अष्टमी की पूजा विशेषकर शाम के समय यानी सूर्यास्त के बाद ही होती है।
  • शाम के समय अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी पर जल से भरा करवा (कलश) रख दें।
  • इस करवा की नोक को एक विशेष घास से बंद किया जाता है।
  • पूजा की रस्मों के दौरान अहोई माता को घास का यह अंकुर भी चढ़ाया जाता है।
  • माता को रोली व चावल अर्पित कर उनका सोलह श्रृंगार करें और मीठे पुए या आटे का हल्वे का प्रसाद चढ़ाएं।
  • कलश पर स्वास्तिक बना कर हाथ में गेंहू के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें।
  • इसके बाद तारों को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न करें।
  • अंत में “अहोई माता की आरती” करके पूजा समाप्त की जाती है।